जयपुर न्यूज डेस्क: जयपुर की बारिश में टूटी-फूटी और जलभराव से भरी सड़कें अब सिर्फ वाहनों के लिए ही नहीं बल्कि पैदल चलने वालों के लिए भी मुश्किल बन चुकी हैं। इस पर राजस्थान हाईकोर्ट ने गंभीर चिंता जताते हुए स्वप्रेरित संज्ञान लिया है। जस्टिस प्रमिल कुमार माथुर की बेंच ने मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर कहा कि गुलाबी नगरी की ये हालत उसकी प्रतिष्ठा को धूमिल कर रही है। कोर्ट ने सवाल उठाया कि क्या जयपुर अपनी सुंदरता और विरासत के लिए पहचाना जाएगा या फिर बुनियादी ढांचे की समस्याओं के कारण ‘डूबता शहर’ बन जाएगा।
हाईकोर्ट ने इस मामले में मुख्य सचिव सुधांश पंत, प्रमुख सचिव (यूडीएच), जेडीसी और हेरिटेज व ग्रेटर नगर निगम आयुक्त को नोटिस जारी कर चार हफ्ते में जवाब मांगा है। कोर्ट ने कहा कि हर मानसून में यहां जलभराव, बाढ़ और जल निकासी की समस्या बनी रहती है, जो न सिर्फ रोजमर्रा के जीवन को प्रभावित करती है बल्कि स्वास्थ्य और पर्यावरण पर भी बुरा असर डालती है। इसके लिए जिम्मेदार अधिकारी अब तक समस्या का स्थायी समाधान देने में नाकाम रहे हैं।
इसी बीच बुधवार को मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने भी सांगानेर में टूटी सड़कों का निरीक्षण किया। भारी बारिश और जलभराव के कारण उनका काफिला ट्रैफिक जाम में फंस गया। स्थानीय लोगों ने सीएम से शिकायत की कि सड़कें ठीक कराना अगर संभव नहीं है तो कम से कम गड्ढे भरवा दिए जाएं। शहर के कई इलाकों में हालत इतनी खराब रही कि रोडवेज बसों के अंदर तक पानी घुस गया और चार पहिया वाहन भी पानी में ‘तैरते’ दिखे।
कोर्ट ने कहा कि सड़क निर्माण और मेंटेनेंस के लिए पर्याप्त बजट होने के बावजूद घटिया सामग्री और तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे सड़कें जल्द खराब हो जाती हैं। हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि शहर की सड़कों की मरम्मत और जलभराव की समस्या खत्म करने के लिए एक समयबद्ध योजना पेश की जाए। साथ ही, सड़क निर्माण में घटिया काम करने वाले ठेकेदारों और बिना निरीक्षण बिल पास करने वाले अधिकारियों के नाम भी बताए जाएं।